सामाजिक व्यवस्था :
इस गाँव में सभी जाति के लोगा मिलजुल कर रहते हैं । दशहरा ,दिपावली, होली, रामनवमी, ईद, मुर्हरम आदि त्योहारो को समरसता के साथ मनाते हैं । यहाँ पर पुराने समय से वृद्धजनों का सम्मान होता रहा हैं। उच्च जाति के लोग भी निम्न जाति के वुजुर्गो को भइया, चाचा, बाबा, कहकर संबोधित करते हैं। ब्राह्मणों का पुरा सम्मान किया जाता हैं। उनके बैठने के लिये श्रेंष्ठ आसन दिया जाता है तथा त्योहरों पर उनको विशेष रूप से सम्मानित किया जाता है । काशीदास की पुजा यद्यपि यदुवंशी लोग करते है लेकिन सभी जाति के लोग अपना पुरा सहयोग प्रदान करते हैं । सहभोज में सभी जाति के लोग एक साथ बैठ कर भोजन करते हैं
प्रचिन समय के समय में परिवारीक व्यवस्था बड़ी उत्तम थी। संयुक्त परिवार था एक छत के निचे सैकड़ो सदस्यो का परिवार रहता था। परिवार के मुखिया का सभी सम्मान करते थे । घर के अन्दर सास या जेठानी का शासन चलता था। बहूये सास ससुर एवं बुजुर्गो की सेवा करना अपना धर्म समझती थी। पुत्र अपने माता-पिता, चाचा-चाची का आज्ञाकारी होते थे । परिवार के सब लोग सुख दुख में हाथ बटातें थें । परिवारीक जिवन सुखमय था ।
आज पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव परिवार पर पड़ रहा हैं संयुक्त परिवार टुट रहा है । पारिवारीक जीवन कष्टमय हो रहा हैं । सरकार भी हम दो हमारे दो को प्राथमिकता दे रही हैं सास -बहू के रिश्ते में काफी खटास पैदा हो रही है। माता-पिता का पवित्र रिश्ता भी पुत्र मानने को तैयार नही है । शिष्य गुरू का मखौल उड़ाता है । ऐसा बदलाव दो दसक से आने लगा है । सेवक मालिक का सम्बन्ध भी समाप्त हो चुका है । चारों ओर निराशा ही दिखाई पड़ रही हैं। राजनितिक पार्टिया वोट प्राप्त करने के लिये जातिगत भावना पैदा करके सामाजिक समरसता को समाप्त कर रही हैं ।